मुजफ्फरनगर। होली चाइल्ड पब्लिक इण्टर कॉलेज, जडौदा,के सभागार में ‘‘टीचर्स ट्रेनिंग ऑन बिहेवियर’’ कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि व कार्यशाला के मुख्य वक्ता डीन एग्रीकल्चर माँ शाकुम्भरी युनिसवर्सिटी सहारनपुर डॉ0 मेजर विजय कुमार ढाका, प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया, अध्यक्ष रीटा दहिया के द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। सर्वप्रथम प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया व आजाद सिंह के द्वारा डॉ0 मेजर विजय कुमार को अंगवस्त्र पहनाकर व बुके देकर सम्मानित किया गया।
उसके बाद डॉ0 मेजर विजय कुमार ने अध्यापकों को सम्बोधित करते हुए बताया कि परिकल्पना सभी आविष्कारों की जननी है, उन्होंने बताया कि हम कुछ शब्दों से भली-भांति परिचित है, लेकिन हम उनके विषय में जानते कुछ भी नहीं है, उनमें से प्रथम है मन, मन आशा का प्रतीक है, मन के दो भाग है चयन तथा अवस्वाद। जब हमें कोई बात किताबों या दूसरों से प्राप्त होती है तो हमें उसमें रूचि न होने के कारण उबासी आने लगती है। परन्तु जब वही बातें हमारे अपने अन्दर से उत्पन्न होती है तो हमें उसमें उत्साह तथा प्रसन्नता उत्पन्न होती है और हम उन्हीं बातों को दूसरों को बताने के लिए उत्सुक रहते है। अतः शिक्षक को अपने विषय में पहले पूर्ण जानकारी करके बच्चों को पढायेगें तो बच्चे स्वयं ही आपके विषय में रूचि लेने लगेगे। हम अपने-आपको जितना अधिक समझते जायेगें, उतना ही स्वयं को पूर्णता की ओर बढायेगें। दूसरा है वृत्ति और वृत्ति की शक्ति है विचार। हमारे विचार विश्लेषणात्मक और तुलनात्मक, वृत्ति मन से ज्यादा शक्तिशाली होती है, वृत्ति स्वयं का आत्मनिरीक्षण करती है। जैसे कबीरदास जी दोहा भी है ‘बुरा देखन मैं चला, बुरा मिला ना कोई, जब देखा आपनो, बुरा मिला न कोई। इसलिए स्वयं सुधार ही सर्वप्रथम उपलब्धि है। तीसरा शब्द है चित्त वृत्ति से भी ज्यादा पॉवरफुल है, इच्छा चित्त की प्रतीक है, चित्त, चित्रण और चिन्तन करता है। चयन, अवसाद, विश्लेषण, तुलना तथा चित्रण ये पांच प्रतीक जीवधारी में पाये जाते है, मगर चिन्तन तक मानव ही पहुंचता है, जब मानव चिन्तन तक पहुँचता है तो यहां से वापिस नहीं हटता, मगर आज का समाज चिंता में जी रहा है, चिन्तन में नहीं। चौथा शब्द बुद्धि, बुद्धि का प्रतीक है बोध। बोध प्रमाण और संकल्प में विभाजित है जैसे आपने सुना होगा अबोध बालक, जब हमें वस्तुओं का ज्ञान नहीं होता है तो हम अबोध होते है, जब कोई छोटा बच्चा आग को छूता है तो पहले उसे आग का बोध नहीं होता, मगर जब वह आग को छू लेता है तो उसे आग का बोध हो जाता है और फिर कभी जीवन में आग को नहीं छुएगा। बोध के लिए प्रमाण की आवश्यकता होती है और प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। मगर प्रमाण तक पहुंचना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। पांचवा शब्द है आत्म, आत्म का प्रतीक है अनुभव और अनुभव से संतोष और आनंद प्राप्त होता है, अनुभव एक गूंगे के गुड का स्वाद है जिस प्रकार एक गूंगा गुड के स्वाद को महसूस तो कर सकता है लेकिन ब्यान नहीं कर सकता है। प्रत्येक मनुष्य आनन्दित होकर जीना तो चाहता है मगर आनन्दित होने की राह में स्वयं ही सबसे बडा रोडा है। हमें उसी रोडे को स्वयं की राह से हटा कर और स्वयं का आत्मनिरीक्षण करके संतोषी एवं आनन्दित जीवन जीने की राह पर स्वयं को आगे बढाना है, हमें चीजों को मानना नहीं बल्कि जानना है और चीजों को हम तभी जान पायेगें, जब हम स्वयं को जान पाएंगे।
अभी तक हमने मनुष्य की पांच परतों की विषय में जानकारी प्राप्त की, अब हमें इन आयामों को अपने व्यवहार व अपनी शिक्षण क्षमता में प्रयोग करना है आप एक अध्यापक होने के बावजूद आपका छोटा बच्चा आपकी बातों पर कम, अपने अध्यापक की बातों पर ज्यादा विश्वास करता है, अगर कभी कोई अध्यापक गलती से कुछ गलत पढा दे और आप अपने बच्चे को उसमें सुधार करने के लिए कहे तो बच्चा ये कहता है कि नहीं मेरे अध्यापक ने ठीक पढाया है इससे यह ज्ञात होता है कि आप अपने विद्यार्थियों के लिए विशेष हो, जैसे- विद्यार्थी अपने शिक्षक पर विश्वास करता है उसी प्रकार हम शिक्षकों को भी अपने विद्यार्थियों पर अटूट विश्वास करना होगा और उनकी अच्छाई को निखारना होगा।
कार्यशाला के समापन पर अध्यक्ष रीटा दहिया और प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया द्वारा डॉ0 मेजर विजय कुमार ढाका को सम्मान प्रतीक देकर आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में नितिन बालियान, सचिन कश्यप, आजाद सिंह, रजनी शर्मा और समस्त स्टाफ का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
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