भाजपा सरकार पहले ‘मुनाफ़ाखोरी’ घटाए और ‘भाजपाई चंदाखोरी’ मिटाए फिर महंगाई घटाने की बात करे। खाद्य तेल पर लगने वाले आयात शुल्क को घटाने का फ़ायदा जनता को भी मिलना चाहिए, न कि केवल घरेलू उत्पादकों को। लागत घट रही है तो खुदरा मूल्य भी घटना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये दिखावटी आयात शुल्क कटौती बस कुछ ख़ास आयातकों और उत्पादकों के फ़ायदे के लिए ही है, जनता के लिए नहीं। चलो इससे ये बात तो साबित हुई कि भाजपा सरकार ने मान लिया है कि बेतहाशा महंगाई ने जनता की कमर तोड़ रखी है और अब अगर इस रिकॉर्ड तोड़ महंगाई को नहीं रोका गया तो जनता भाजपाइयों के घर के बाहर तेल के खाली डिब्बे बजाने लगेगी।
भाजपा सरकार खाद्य सामग्री की लागत-लाभ के अनुपात को तार्किक रूप से जनता के पक्ष में तय कर दे मतलब जनहित में ये फ़ैसला ले कि एक निश्चित प्रतिशत से अधिक कोई भी खाद्य उत्पादक मुनाफ़ा नहीं कमाएगा, लेकिन इसके लिए पहले भाजपा स। रकार को ये भी क़सम खानी पड़ेगी कि वो कम-से-कम खाद्य कंपनियों से तो ‘भाजपाई चंदा वसूली’ नहीं करेगी क्योंकि भाजपा जब कंपनियों से चंदा वसूलती है तब कंपनियाँ उस चंदा वसूली के पैसों को लागत का हिस्सा मानकर जनता से ही वसूलती हैं। हर टैक्स और चंदा आख़िरकार जनता से ही वसूला जाता है। इसीलिए ‘भाजपाई चंदा’, टैक्स के अलावा जनता पर भाजपा की दोहरी मार बनता है और महंगाई का कारण भी। अब तो अर्थशास्त्रियों को विक्रय मूल्य में ‘भाजपाई चंदा वसूली’ को भी जोड़ने का नया गणितीय फ़ार्मूला बना लेना चाहिए। भाजपा अपनी चंदा वसूली बंद कर दे तो हर वस्तु और सेवा के दाम वैसे ही कम हो जाएंगे।
‘दाम बंदी’ भाजपा की कारोबारी मानसिकता में दरअसल कभी नहीं रही है। महंगाई पर नियंत्रण के लिए जनता की भलाई करनेवाली नीयत और इच्छाशक्ति ज़रूरी होती है, जो भ्रष्टाचार के लक्ष्य की पूर्ति के लिए हासिल की गयी भाजपा जैसी मुनाफ़ाख़ोर सत्ता के पास कभी नहीं होती है।
इसीलिए आयात शुल्क घटे और जनता के लिए वस्तुओं के दाम भी घटें, तब ही ऐसी घोषणाओं का फ़ायदा है। अब देखना ये है कि कुछ दिनों बाद खाद्य तेलों के दाम गिरने की ख़बरें आती भी हैं या नहीं या फिर ग़रीब की थाली से तेल ही गायब हो जाएगा।
ग़रीब कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!
अखिलेश यादव
पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश
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